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'कंप्यूटर जी' से सावधान !

सदी के महानायक माने जाने वाले बुज़ुर्ग अभिनेता अमिताभ बच्चन जब कौन बनेगा करोड़पति के शो में...

👤 P K Khurana1 May 2015 12:32 PM GMT
कंप्यूटर जी से सावधान !
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सदी के महानायक माने जाने वाले बुज़ुर्ग अभिनेता अमिताभ बच्चन जब कौन बनेगा करोड़पति के शो में कंप्यूटर को कंप्यूटर जी कहकर बुलाते हैं तो उनकी इस अदा पर हम बाग-बाग हो जाते हैं। पर यही कंप्यूटर जी आपके लिए कितना बड़ा खतरा हैं, यह शायद आपको अंदाज़ा भी न हो। यह सच है कि आज कंप्यूटर हमारे जीवन का इतना अहम हिस्सा है कि हम कंप्यूटर के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। कंप्यूटर, इंटरनेट और सोशल मीडिया हमारे जीवन में रच-बस गए हैं और हम इनके इतने आदी हो गए हैं कि हमारा जीवन इनके साथ ही चलता है। कंप्यूटर है तो इंटरनेट है, ईमेल है, सोशल मीडिया है, और यह सब है तो निजता अथवा प्राइवेसी किसी दूसरी दुनिया की चीज़ बन कर रह गई है। ईमेल सेवा देने वाली कंपनियां यानी गूगल, हॉटमेल, याहू और रिडिफमेल आदि आपकी ईमेल पर बारीक निगाह रखकर आपके मन में झांकती हैं और एक संभावित ग्राहक के रूप में आपकी आवश्यकताओं, इच्छाओं आदि का विश्लेषण करती रहती हैं। यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। आपकी छुपी-दबी इच्छाओं के विश्लेषण के बाद भिन्न-भिन्न मार्केटिंग कंपनियां आपको अपने उत्पादों और सेवाओं के प्रस्ताव भिजवाती हैं। समस्या सिर्फ यह है कि आपसे संबंधित जानकारी इतनी मार्केटिंग कंपनियों में बंट जाती है कि आपको विभिन्न प्रस्तावों के ईमेल, जंक मेल और टेलिफोन कॉल्स की बाढ़-सी आ जाती है। यह भी एक छोटी समस्या है, बड़ी समस्या है आपके ईमेल और इंटरनेट से जुड़ी अन्य सुविधाओं के पासवर्ड की चोरी।

भारतवर्ष में भी अब ऑनलाइन खरीदारी करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। बस, रेल और हवाई टिकटें बुक करवाने के लिए तथा अन्य ऑनलाइन खरीदारियों के लिए आप क्रेडिट कार्ड अथवा डेबिट कार्ड का प्रयोग करते हैं। ऐसे में आपका पासवर्ड ही आपकी खरीदारी का साधन है। किसी ज़माने में पासवर्ड शब्द बड़े अपराधियों और स्मगलरों के बीच हुआ करता था, लेकिन अब यह एक घरेलू शब्द है। तकनीकी तरक्की ने हर घर और हर व्यक्ति को कोई न कोई पासवर्ड थमा दिया है। अक्सर लोग अपने बैंक एटीएम, ईमेल और अन्य वेबसाइट्स के लिए एक ही पासवर्ड रखते हैं और उसे वर्षों तक बदलते नहीं हैं। मोबाइल से इंटरनेट और नेट बैंकिंग सुविधा का प्रयोग करते हैं, नेटबैंकिंग के लिए आसान पासवर्ड रखते हैं और मोबाइल फोन में एंटीवायरस नहीं रखते। यह सुरक्षित व्यवहार नहीं है और ऐसे सभी लोग हैकरों के आसान शिकार हो सकते हैं।

समस्या यह है कि भारतवर्ष में पासवर्ड चुराने वाले किसी भी दोषी को आज तक कोई सजा नहीं हुई है। कहा जाता है कि हमारा कानून ऐसे अपराधों की रोकथाम के लिए अपर्याप्त है। पुलिस पर्याप्त प्रशिक्षित नहीं है। पासवर्ड चोरी करने वाले अपराधी पर सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 लागू होता है जिसमें अब तक कई संशोधनों के बाद अब अधिकांश साइबर क्राइम को जमानती अपराध घोषित कर दिया गया है। अपराधी इसका लाभ उठाकर बच निकलते हैं। तकनीक ने इतनी प्रगति कर ली है कि हम पासवर्ड के मामले में बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं। पासवर्ड चुराने के लिए ब्रूटफोर्स पासवर्ड क्रैकर तथा की-लॉगर जैसे विशिष्ट सॉफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं, जो अपराधियों का काम और भी आसान कर देते हैं। इसके अलावा भी पासवर्ड चुराने की कई उन्नत तकनीकें विकसित हो चुकी हैं। पासवर्ड चुराने के बाद बैंक खाते से पैसे निकालना, अकाउंट का ब्योरा लेना, व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक गोपनीय जानकारियां लेना आदि संभव हो जाता है।

किसी जमाने में आठ अक्षरों वाले पासवर्ड को सुरक्षित माना जाता था, फिर कहा जाने लगा कि अल्फा-न्यूमेरिक, यानी, अक्षरों और अंकों के संयोजन से बनने वाले पासवर्ड सुरक्षित हैं, फिर कहा जाने लगा कि असामान्य किस्म का (अनयूजुअल) अथवा जटिल पासवर्ड ही ज्य़ादा सुरक्षित है। साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि अल्फान्यूमेरिक पासवर्ड भी तोड़े जा सकते हैं। आज बड़े पैमाने पर सूचनाएं चुराई जा रही हैं। अत: पासवर्ड की सुरक्षा के प्रति लापरवाही खतरनाक है। विशेषज्ञों की सलाह है कि पासवर्ड में 12 से ज्यादा अक्षरों-अंकों-चिन्हों का संयोजन हो, अपनी सामान्य पहचान, व्यवहार और स्वाभाव के विपरीत जाकर पासवर्ड चुनें, बैंकिंग पासवर्ड हमेशा अलग बनाएं तथा अन्य पासवर्ड भी अलग-अलग बनाएं, नेट सुविधा वाले मोबाइल का सुरक्षित पासवर्ड बनाएं, ब्लू टूथ ऑन न रखें और मोबाइल फोन सेट में भी एंटीवायरस ऐप्स रखें। अब बायोमीट्रिक पासवर्ड की बातें की जा रही हैं जिसमें फिंगर प्रिंट, रेटिना स्कैन, फेस आइडेंटिफिकेशन आदि तरीके भी शामिल हैं, हालांकि इनको भी हैक करने के प्रयत्न आरंभ हो चुके हैं। फिलहाल विशेषज्ञों की राय है कि आपके पासवर्ड में सिंबल, कैरेक्टर, कैपिटल लैटर और नंबर का इस्तेमाल होना चाहिए। इससे पासवर्ड के बिट्स बढ़ते चले जाएंगे और पासवर्ड को तोडऩा आसान नहीं होगा।

हमें एक और महत्वपूर्ण अंतर जानने की आवश्यकता है। पासवर्ड क्रैक होना और चोरी होना, दो अलग बाते हैं। हमारे यहां पासवर्ड चोरी ज्य़ादा होते हैं। अत: हमें मित्रों, रिश्तेदारों और परिचितों से भी सावधान रहना चाहिए। हम की-लॉगर नामक सॉफ्टवेयर का जिक्र कर ही चुके हैं। यदि किसी कंप्यूटर में यह सॉफ्टवेयर डाल दिया जाए तो यह हिडन मोड में आ जाता है और उस कंप्यूटर में जो कुछ भी टाइप किया जाएगा, वह पूरा का पूरा रिकार्ड हो जाएगा। इस तरह उस कंप्यूटर का पूरा डाटा चुराया जा सकता है।

वर्ष 2004 में बिल गेट्स ने पासवर्ड के खात्मे की भविष्यवाणी की थी और अब यह सच साबित होने लगी है। अब वॉयस पासवर्ड, रेटिना, पुतली और स्कल स्कैन जैसे बायोमीट्रिक तकनीकें विकसित हो रही हैं। ब्रेन वेव्स और हार्ट बीट को भी पासवर्ड बनाने पर काम चल रहा है। कई संस्थानों में नसों से कर्मचारियों को पहचानने पर काम चल रहा है। गूगल भी साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए दोहरे पासवर्ड की व्यवस्था लागू करने पर काम कर रहा है। पर सबसे सुरक्षित यही है कि हम खुद अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें। आवश्यकता इस बात की है कि हम सजग हों, अपने डाटा की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें, पासवर्ड आसान न रखें, शहरों, मोहल्लों, परिवारजनों, मित्रों आदि के नाम से संबंधित पासवर्ड न बनाएं। अपनी सुरक्षा खुद करें। इसी में हमारी भलाई है।

By P K Khurana, Chandigarh

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